शहर में कोरोना का कर्फ्यू 17 तारीख तक जारी है सब कुछ अस्त-व्यस्त है प्रशासन भी सक्ती बरते हुए हैं ,कोरोना काल में गरीबों के धंधे चौपट हो गए हैं गरीब जो केवल अपने व्यवसाय के बल पर घर का खर्च चला रहे थे उनके लिए अब दो वक्त की रोटी के लिए चिंता सताने लगी है वह मजबूरी में सन्नाटे भरी सड़कों पर इस तरह अपने व्यवसाय करने को मजबूर हैं, पिछले लॉकडाउन में तो खाने का इंतजाम तो हो ही जाता था लेकिन इस बार तो सभी ने हाथ खड़े कर दिए।
वॉइस ओवर-तस्वीर देखकर आप का मन दुखी जरूर होगा कोरोना जैसी महामारी के चलते यह लोग पेट की खातिर अपना व्यवसाय करने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि अगर यह कुछ बेचेंगे नहीं तो इनके पास पैसा नहीं आएगा पैसा नहीं होगा तो खाने के लाले पड़ जाएंगे क्योंकि पिछले लॉकडाउन के समय पर समाजसेवियों ने इन गरीब लोगों के लिए खाने का इंतजाम भरपूर किया था। अब इनके धंधे बंद हो रहे हैं ऐसे में इनके हाल-चाल और रोटी के लिए कोई नहीं पूछ रहा है।
जय स्तंभ चौक पर जूता पॉलिश करने वाले दिव्यांग व्यक्ति महामारी और संकट काल के दौरान भी इसलिए अपनी जान जोखिम डाले हुए हैं क्योंकि उसे घर का खर्च चलाना है परिवार में 4 सदस्य हैं गरीबी रेखा का राशन कार्ड तो है, जिसमें 3 लोगों के लिए ही अनाज मिलता है लेकिन और आवश्यकता के लिए उसे अपना व्यवसाय करना ही पड़ता है वह मजबूर है लेकिन पेट सब कुछ करा देता है शासन और प्रशासन के नुमाइंदे इस और कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं।
वही सूपा डलिया बेचने वाली यह महिला भी मजबूरी में भरी दुपहरी में पेट की खातिर सूपा डलिया बांस से बनाने वाली सामग्री बेच रही हैं, इन्हें भी कोई मदद नहीं मिली इतना ही नहीं इनका राशन कार्ड भी नहीं है यह कहती हैं सरकारी अनाज नहीं मिलता पेट की खातिर आना पड़ता है इन डलिया सूपा बेचकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो जाता है साहब
वही 4 बच्चियों के साथ बैठी महिला सब्जी बेच रही है इनकी भी मजबूरी है पेट सब कुछ करा देता है इन्हें भी आर्थिक सहायता की दरकार है
पिछले लॉकडाउन के समय समाजसेवियों के साथ जनप्रतिनिधियों के अधिकारियों ने पर चढ़कर खाने के पैकेट वितरित करवाए थे लेकिन इस बार वह नजारा नहीं मिल रहा है ताकि गरीब बेसहारा लोगों को रोटी का इंतजाम तो हो सके। वही इनका कहना है कि शासन हमारे बारे में सोचें तो शायद हम इस महामारी के दौर में पेट की खातिर या ना आए हम भी अपने घर में सुरक्षित रहें लेकिन अनदेखी के चलते यह यहां आना पड़ता है।
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