बिहार//मेंथा के साथ सबसे अच्छी बात है कि इसमें लागत काफी कम आता है. फसल 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है।

 अखिलेश्वरा झा //


किसानों की आय दोगुना करने के लिए तरह-तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं. उन्हें पारंपरिक खेती के साथ नए विकल्पों को चुनने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसी कारण से किसानों के बीच औषधीय पौधों की खेती करने का प्रचलन बढ़ रहा है. इनकी मांग दुनिया भर में रहती है और उत्पादन कम है, इसलिए अच्छा दाम मिलता है।


अगर आप भी किसी औषधीय पौधे की खेती की तैयारी करने की सोच रहे हैं तो मेंथा आपके लिए एक शानदार विकल्प है. मेंथा के साथ सबसे अच्छी बात है कि इसमें लागत काफी कम आता है. फसल 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है. इस कारण किसानों को जल्द ही खेती में किए गए खर्च का पैसा मोटे मुनाफे के साथ वापस आ जाता है.


1000 रुपए से अधिक रुपये प्रति लीटर बिक रहा मेंथा का तेल।

मेंथा की खेती स्वतंत्र रूप से या कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर किसान कर रहे हैं. स्वतंत्र रूप से खेती करने में फायदा ज्यादा होता है, क्योंकि किसान मेंथा के पत्ते को नहीं बल्कि उससे तेल निकालकर सीधे बाजार में बेचते हैं. वर्तमान में मेंथा का तेल 1000 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है. किसान ज्यादा मुनाफा की चाह में खुद से खेती करने को ज्यादा तरजीह देते हैं. लेकिन कंपनियों से अच्छी कीमत मिलने की सूरत में वे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी कर रहे हैं.


इस यूरोपीय पौधे का भारत मुख्य उत्पादक देश

मेंथा मुख्य रूप से यूरोपीय पौधा है. लेकिन अब भारत भी इसका मुख्य उत्पादक देश बन गया है. पूरी दुनिया में मांग और इस्तेमाल बढ़ने से यह किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प बन गया है. मेंथा का ठंडी चीजों में इस्तेमाल किया जाता है. इससे पिपरमिंट, दर्द निवारक दवाइयां और मलहम बनता है. आयुर्वेदिक दवाइयों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.


बलुई दोमट और चिकनी मिट्टी में पैदावार अच्छी होती है

मेंथा की खेती के लिए सबसे पहले उपयुक्त जमीन का चयन जरूरी है. खेत में पानी का उचित निकास होना चाहिए. बलुई दोमट और चिकनी मिट्टी में इसकी पैदावार अच्छी होती है. रोपण से पहले मिट्टी की जांच किसानों को जरूरी करा लेनी चाहिए. इस बात का ध्यान रहे कि जिस खेत में इसे रोपना है, उसका पीएच मान 6.5 से 7 के बीच हो. हल्की ढिली मिट्टी और भारी मिट्टी वाले खेत में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए.


रबी फसल के बाद रोपण विधि से इसकी खेती की जाती है. इसमें सबसे पहले पौधों की नर्सरी तैयार की जाती है. 30 से 40 दिन में पौधा तैयार हो जाता है. जनवरी-फरवरी में नर्सरी तैयार की जाती है. मार्च और अप्रैल में इन पौधों का मुख्य खेत में रोपण किया जाता है, जहां मेंथा की पहली बार खेती की जाती है, वहां सीधे सर्कस से बुआई अच्छी होती है. सर्कस एक प्रकार का तना होता है. यह पहले से खेती कर रहे किसानों के यहां से मिल सकता है.


मेंथा की समय पर कटाई बेहद जरूरी

सर्कस को सीधे खेत में 60 से 75 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाते हैं. जनवरी फरवरी में लगाए गए सर्कस का जमाव 2 से 3 सप्ताह में होना शुरू हो जाता है. अगर आप आधे हेक्टेयर भूमि में फसल लगाते हैं तो अगले साल इसे 10 हेक्टेयर में रोप सकते हैं. मेंथा की सही समय पर कटाई करनी चाहिए. वर्ना उपज और गुणवत्ता पर असर पड़ता है.


जल्दी कटाई करने पर मेंन्थॉल की मात्रा घट जाती है और देर से कटाई करने पर पत्तियों से निकलने वाले तेल की मात्रा कम हो जाती है. पौधों की आयु के साथ तेल और मेन्थॉल की मात्रा बढ़ती रहती है. सामान्य तौर पर मेंथा की पहली कटाई 100 से 120 दिन बाद और दूसरी कटाई 60 से 70 दिन बाद करना चाहिए.



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